Whaet crop
गेहूं की फसल: पूरी जानकारी (स्थानीय भाषा में)
गेहूं (Triticum aestivum) भारत की सबसे महत्वपूर्ण रबी फसलों में से एक है। यह मुख्य रूप से उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में उगाई जाती है। गेहूं का आटा हमारे दैनिक आहार (रोटी, ब्रेड, सिवई, पास्ता, दलिया, केक, कुकीज आदि) का मुख्य घटक है।
गेहूं का जीवन चक्र
गेहूं की बुवाई: अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक (15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच) गेहूं की बुवाई सबसे अच्छी मानी जाती है। देर से बुवाई करने से पैदावार में कमी आ जाती है।
अंकुरण: बुआई के 6-10 दिन बाद अंकुरण शुरू होता है।
कल्ले विकास: 20-25 दिन के बाद पौधे में कल्ले (टिलर) निकलने लगते हैं।
गांठ बनना: 40-45 दिन पर गांठ (नोड) बनना शुरू हो जाता है।
फूल आना: 80-85 दिन पर फूल आते हैं।
दाना बनना: 100-105 दिन पर दाने में दूध पड़ना शुरू होता है।
कटाई: फसल 110-150 दिन (देसी किस्मों में कभी-कभी अधिक) में पककर तैयार हो जाती है।
कटाई के बाद: फसल की कटाई, मंडाई, भंडारण और विपणन अंतिम चरण हैं।
भूमि की तैयारी एवं बुवाई
भूमि: गेहूं के लिए भुरभुरी, उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी उत्तम है। पुरानी फसल की कटाई के बाद खेत की 2-3 बार गहरी जुताई करके भुरभुरा बना लेना चाहिए।
बुवाई: बीज की गहराई 4-5 सेमी, कतार से कतार की दूरी 18-22 सेमी, और बीज की मात्रा स्थानीय प्रजाति, बुवाई के समय और विधि पर निर्भर करती है (आमतौर पर 50-70 किलो प्रति एकड़)।
नमी: बुआई से पहले खेत में पर्याप्त नमी आवश्यक है। अगर नमी न हो तो हल्की सिंचाई करें।
सिंचाई प्रबंधन
सिंचाई की संख्या: अधिक उपज के लिए 5-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है।
सिंचाई का समय:
पहली सिंचाई (अंकुरण के 20-21 दिन बाद)
दूसरी सिंचाई (कल्ले विकास, 40-45 दिन)
तीसरी सिंचाई (गांठ बनना, 60-65 दिन)
चौथी सिंचाई (फूल आना, 80-85 दिन)
पांचवी सिंचाई (दाने में दूध भरना, 100-105 दिन)
छठी सिंचाई (दाना सख्त होता समय, 115-120 दिन, अगर पानी उपलब्ध हो)।
उर्वरक एवं खाद प्रबंधन
संतुलित उर्वरक: 150 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर डालें।
जैविक खाद: 10 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर भूमि तैयारी के समय डालें।
सूक्ष्म पोषक तत्व: जस्ता, लोहा, मैंगनीज जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व भी आवश्यक हो सकते हैं, विशेषकर राजस्थान की मिट्टी में।
प्रमुख किस्में
राजस्थान और मध्य भारत के लिए उपयुक्त किस्में:
शेरा (उदयपुर, कोटा, मंडल के लिए उपयुक्त)
सोनालिका (समय से बुआई के लिए)
एग्रो एचडी-2967, पीबीडब्ल्यू-343, एचडी-4728, जनक, प्रताप, सी-306, उज्जवला, एएमयू-300।
रोग एवं कीट प्रबंधन
प्रमुख रोग: रतुआ (पुआल), कण्डुआ, पीला रतुआ, पाउडरी मिल्ड्यू, फुस्सू जाति के कीट, गंजरी, दीमक, च्यूंटा आदि।
नियंत्रण: प्रतिरोधी किस्में, बीज उपचार, समय से बुवाई, संतुलित खाद, फसल चक्र, एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) और समय पर निगरानी।
फसल चक्र एवं अंतरवर्ती खेती
फसल चक्र: गेहूं के बाद खरीफ में दलहन या तिलहन लगाने से मिट्टी की सेहत सुधरती है।
अंतरवर्ती खेती: गेहूं-सरसों, गेहूं-चना, गेहूं-मसूर आदि की अंतरवर्ती खेती अधिक लाभदायक है।
कटाई एवं उपज
कटाई का समय: जब दाना सख्त हो जाए और रंग पीला-सुनहरा हो जाए।
उपज: उन्नत किस्मों में 50-60 क्विंटल/हेक्टेयर, सामान्यतः 30-40 क्विंटल/हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है।
स्थानीय व्यवहार एवं किसान अनुभव
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में गेहूं की खेती परंपरागत रूप से महत्वपूर्ण है। किसान अनुभव से जानते हैं कि बुवाई का सही समय, सिंचाई, खाद-उर्वरक का उचित प्रबंधन, रोग-कीट नियंत्रण और भूमि की उर्वरता को बरकरार रखना ही उच्च उपज की कुंजी है। आधुनिक तकनीक (जीरो टिलेज, सीडड्रिल, ड्रिप सिंचाई, सटीक खेती, बीज उपचार) से उत्पादन और आय दोनों में वृद्धि संभव है।
निष्कर्ष
गेहूं की खेती में सफलता के लिए निम्न बातें ध्यान में रखें:
बुवाई समय: अक्टूबर-नवंबर (राजस्थान में जल्दी नहीं, तो 15 दिसंबर तक)।
सिंचाई: 5-6 बार, फसल की अवस्था अनुसार।
उर्वरक: संतुलित मात्रा में, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सूक्ष्म पोषक तत्व।
रोग-कीट नियंत्रण: प्रतिरोधी किस्म, बीज उपचार, फसल चक्र, फसल अवशेष प्रबंधन।
आधुनिक तकनीक: जीरो टिलेज, सीडड्रिल, ड्रिप/फव्वारा सिंचाई, मृदा परीक्षण आदि का प्रयोग।
गेहूं की फसल भारत की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ है, और राजस्थान के किसानों के लिए यह आर्थिक सुरक्षा का प्रमुख आधार भी है। सही प्रबंधन एवं प्रयास से गेहूं की खेती से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
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