- : (कातरा कीट ):-
वैज्ञानिक नाम - ऐमसैक्टा मूरी।
गण - लेपिडोप्टेरा
कुल - आर्कटिडी
यह एक सर्वभक्षी कीट है । कीट की यह प्रजाति उत्तरी भारत में सबसे ज्यादा पाई जाती हैं।
लक्षण - इसके प्रौढ़ शलभ स्थुलकाय , मध्यम आकार के काले बिन्दुओं वाले सफेद पंख युक्त होते हैं।अग्र पंख के बाहरी किनारे ,वक्ष का कुछ भाग एवं उदर सिंदुरी लाल रंग का होता है। पूर्ण विकसित सूंड़ी गिडार 40 से 50 मि.मी लम्बी होती है। इनका पूरा शरीर लाल भूरे रंग के बालों से ढका होता है तथा सिर गहरे भूरे रंग का होता है।
पौषक पौधे - खरीफ में पैदा होने वाली करीब - करीब सभी फसलों विशेषतः बाजरा , मक्का, ज्वार , मूंग, मोठ सनई एवं तिल आदि को अधिक हानि पहुंचाता है
क्षति एवं महत्व - इस की का प्रकोप हल्की भूमि तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों अधिक होता है किट की सुंडी पौधों के कोमल भागों पर समुह में रहकर खाती है। परन्तु कुछ बड़ी होने पर ये अलग-अलग पतियों तथा पौधों के अन्य मूलाराम भागों को खाकर नष्ट कर देती । कीट का अधिक प्रकोप होने पर खेतों में शत प्रतिशत हानि होती है।
जीवन चक्र - कातरा के शलभ वर्षा ऋतु की पहली एक एक या दो अच्छी भारी वर्षा के पश्चात् भुमि से रात्रि में ही बाहर निकलते हैं और प्रकाश स्रोत की ओर आकर्षित होते हैं। प्रौढ़ मादा शलभ मैथून के कुछ घण्टों पश्चात ही अण्डे क् पतियों की निचली सतह पर समुह में देती है। अण्डे हल्के पीले रंग के पोस्ट के बीजों के समान दिखाई देते हैं। एक मादा अपने जीवन काल में 1500 तक अण्डे देती है इन अण्डो से 4-5 दिन में शिशु सुंडी निकल जाती है जो आरम्भ में समूह में पश्चात अलग-अलग पतियों को खाती है। सुंडी छं बार त्वचा निर्मोचन करने के पश्चात 15-23 दिन में पूर्ण विकसित हो जाती है। सुंडी, कोशित में परिवर्तित होने से पूर्ण भारी झाड़ियों तथा वृक्षों के नीचे जाकर 10-30 से.मी की गहराई का कोषावस्था में बदलती है। यह कोशित आगामी वर्षा ऋतु तक 9-10 माह भूमि के अन्दर पड़े रहते है। साधारण दशाओं में इसका जीवन चक्र 26 से 41 दिनों में पुरा हो जाता है तथा वर्ष में प्रायः एक पीढ़ी वह कभी कभी अधिक पीढ़ियों भी पारी जाती है।
नियन्त्रण - शस्य प्रबंधन - वर्षा ऋतु की पहली अच्छी बरसात के साथ ही रात्रि में वयस्क शलभ भूमि से बाहर निकलते हैं। जिनका खेतों में प्रकाश पाश पर आकर्षित कर नष्ट कर देना चाहिए। कातरा के अण्डे समुहो को प्रस्कोटन होने से पूर्व ही एकत्रित कर नष्ट कर देता।
जैविक प्रबंधन -खरीफ फसल की कटाई करते ही खेतों में गहरी जुताई कर देनी चाहिए। जिससे भूमि से बाहर निकलना वाले कोशिशों को परभक्षी पक्षी (मैना,कोइ)खाकर नष्ट कर देंगे तथा कुछ तापक्रम की वजह से मर जायेंगे।
कीट को अण्ड परजीव्याभ ट्राईकोडर्मा प्रजाति एवं देतिगैमस प्रजाति द्वारा भी नियंत्रित कर सकते हैं
रासायनिक प्रबंधन - खेतों में शिशु गिडारो के निकलते ही फसलों पर मैलाथियान 5.0 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चुर्ण का 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भूतकाल या क्यूनालफास 25 इसी 1.25 लीटर को 250 से 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर नियन्त्रण करना चाहिए।
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